मदरसों से जुड़े हुए एक मामले की सुनवाई के दौरान नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि, बच्चों की शिक्षा के लिए मदरसे सही स्थान नहीं है और न ही यहां दी जाने वाली शिक्षा व्यापक है साथ ही यह Right to Education Act के नियमों के भी खिलाफ है। इसके अलावा मदरसों में इस्लाम (Islam) को ही सर्वोच्च माना जाता है और इस्लाम की शिक्षा को ही प्रमुखता दी जाती है। वही देश में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले निकाय ने भी कहा है कि जो बच्चे औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में शामिल नहीं हैं, वे मिड-डे मील, स्कूल यूनीफॉर्म आदि जैसे अपने प्राथमिक शिक्षा के मौलिक अधिकारों से भी वंचित रह जाते हैं।
एनसीपीसीआर ने यह भी कहा है कि कुछ मदरसों में सिर्फ़ दिखावे के लिए ही एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाया जाता है जिससे यह सुनिश्चित नहीं होता कि बच्चों को औपचारिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट में दिए गए अपने लिखित बयान में भी एनसीपीसीआर ने कहा है कि ‘मदरसे ‘उचित’ शिक्षा प्राप्त करने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है, बल्कि यहां आरटीई अधिनियम की धारा 19, 21,22, 23, 24, 25 और 29 के द्वारा दिए गए अधिकारों का भी अभाव है। साथ ही मदरसे न केवल शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत करते हैं, बल्कि उनके काम करने का तरीका भी मनमाना है।‘ साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि मदरसों जैसी संस्थानो में पढ़ने के कारण बच्चे स्कूल में दिए जाने वाले स्कूली पाठ्यक्रम के बुनियादी ज्ञान से वंचित रह जाते हैं।
आपको बता दें कि बीती पांच अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को रद्द करने के फैसले पर रोक लगा दी थी जिसमें उच्च न्यायालय ने मदरसा कानून 2004 को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन बताया था। जिसके बाद हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं। जिसमें केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किए गए थे।
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