उत्तर प्रदेश में विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में हर तरफ बसपा अपना अस्तित्व खोती नजर आ रही है। कभी उपचुनाव न लड़ने वाली बसपा ने इस बार सभी नौ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। लेकिन, वह कुछ खास नहीं कर सकी। या यूं कहें कि 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद से बसपा लगातार नीचे गिरती दिख रही है।
पहली बार बसपा ने उपचुनाव लड़ने का एलान किया। लेकिन, इसमें भी कुछ हासिल नहीं कर सकी। सभी नौ सीटों बसपा निचले पायदान पर नजर आ रही है। जिसके पीछे का एक बड़ा कारण बड़े नेताओं का चुनाव प्रचार से दूरी बनाना भी माना जा रहा है। चुनाव प्रचार से दूरी मतलब बसपा के लिए आमजन से दूरी साबित हुई। जिससे प्रत्याशी जनता के दिल में जगह नहीं बना पाए। दरअसल लगातार नीचे की ओर खिसकती बसपा पार्टी प्रमुख मायावती समेत लगभग सभी बड़े नेताओं ने एक भी रैली नहीं की। जिसका खामियाजा अब बसपा को भुगतना पड़ा। जिसका असर चुनाव परिणाम में साफ दिख रहा है।
2019 के बाद बसपा का राजनीतिक सफर
आपको बता दें, वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव हुए। जिसमें बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया। इस चुनाव में बसपा को 10 सीटें हासिल हुईं। लेकिन वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन खत्म कर लिया। जिसका चुनाव में असर भी दिखा रहा है। दरअसल, बसपा को महज एक सीट पर जीत मिली। जो कि बसपा के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था इसके बाद 2024 में भी आमचुनाव में बसपा ने अकेले लड़ने की घोषणा की। और मेहनत भी की लेकिन, ना तो आलाकमान और ना ही पार्टी प्रत्याशी जनता के मन में जगह बना पाए।
अकेले चुनाव लड़ने का एलान
आमचुनाव में मिली हार के बाद बसपा को यूपी में वापसी की उम्मीद थी। शायद इसीलिए कभी उपचुनाव ना लड़ने वाली बसपा ने इस बार उपचुनाव लड़ने का फैसला किया। बसपा सुप्रीमो मायावती ने सभी नौ सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया। लेकिन, अब जब नतीजे आ रहे हैं तो बसपा को एक भी सीट मिलते नहीं दिख रही है। आलम यह रहा कि बसपा अपने पारंपरिक वोट भी पूरी तरह से पक्ष में नहीं ला सकी। बसपा का कोर वोटर दलित माना जाता है। लेकिन, बसपा उसे भी बांधकर रखने में असफल साबित हो रही है। चुनाव नतीजों में इसका असर साफ दिख रहा है।
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