भारतीय संविधान की प्रस्तावना से सुप्रीम कोर्ट ने धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द हटाने की याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इमरजेंसी के दौरान किया गया संवैधानिक संशोधन अमान्य नहीं हो सकता। जी हाँ, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार, 25 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ में भारतीय संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटाने की मांग करने वाली तीन याचिकाओं को खारिज कर दिया।
आपको बता दें, कि धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द 1976 में राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान 42वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में जोड़े गए थे, जो प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी कहा गया है कि हालांकि यह सच है कि संविधान सभा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को शामिल करने पर सहमत नहीं हुई थी, लेकिन संविधान एक जीवित दस्तावेज है और संसद को अनुच्छेद 368 की शर्तों के अनुसार, इसमें संशोधन करना चाहिए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में इससे जुड़ी याचिकाएं पूर्व भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, सामाजिक कार्यकर्ता बलराम सिंह और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थीं। जिसमें याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि 42वें संशोधन ने संविधान निर्माताओं की मूल दृष्टि को विकृत कर दिया था और संविधान निर्माताओं ने संविधान सभा की बहसों के दौरान जानबूझकर “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को बाहर रखा था।
Add Comment