भारतरत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस आज यानी 6 दिसंबर को है. इस मौके पर हमारी इस ख़ास पेशकश में हम आपको बतायेगे एक समय देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी बसपा के डाउन फॉल की sabse badi कहानी…..
तो चलिए आपको समझाते है शुरू से।
कैसे और किसने बनाई बसपा ?
चिड़िया से हाथी तक का सफर ?
क्यों खतरे में है बसपा का अस्तित्व ?
एक समय देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी आज क्यों है एक एक सीट के लिए मोहताज़ ?
यूपी में समय के साथ क्यों फ़ैल हो गयी बसपा की रड़नीति ?
बसपा को क्यों करना पद गया समाजवादी पार्टी से गठबंधन ?
बसपा का पतन राइज ऑफ़ भाजपा या चंद्रशेखर आज़ाद ?
(बीएसपी) के संस्थापक कांशीराम ने देशभर में दलित समुदाय के अंदर सियासी चेतना जगाने का काम किया, जिसके जरिए मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. एक समय बीएसपी देश में तीसरी ताकत बनकर उभरी. कांशीराम ने 15 दिसंबर 2001 को लखनऊ में मायावती को अपना सियासी उत्तराधिकारी घोषित किया था. मायावती ने पार्टी को राजनीतिक बुलंदी तक पहुंचाया और 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई.
अब आपको बताते है कौन है कांशीराम
BSP का गठन कांशीराम ने अंबेडकर जयंती पर 14 अप्रैल 1984 को किया था. बीएसपी के गठन से पहले कांशीराम पुणे की गोला बारूद फैक्ट्री में क्लास वन अधिकारी के रूप में तैनात थे. आंबेडकर जयंती पर छुट्टी को लेकर दीनाभाना का अपने सीनियर से विवाद हो गया. बदले में उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. इसके बाद कांशीराम को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने कहा, ‘बाबा साहब आंबेडकर की जयंती पर छुट्टी न देने वाले की जब तक छुट्टी न कर दूं, तब तक चैन से नहीं बैठ सकता. और यही से शुरू होने जा रही थी बसपा की सबसे बड़ी कहानी…..
बीएसपी संस्थापक कांशीराम ने सियासत को ऐसे मथा कि सारे सियासी समीकरण उलट-पुलट हो गए और दलित समाज के अंदर राजनीतिक चेतना जगाने का काम किया. बसपा का पहला चुनाव चिन्ह हाथी नहीं चिड़िया था । बसपा को इस चुनाव चिन्ह पर पांच साल में हुए चुनाव में कहीं पर चिड़िया चुनाव चिन्ह पर कोई जीत न मिलने पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने 1989 में पहली बार हाथी चुनाव चिन्ह लेकर बिजनौर के सियासी मैदान में उतरी और यही से जीत हासिल कर वह पहली बार संसद बनी । इसके बाद से ही बसपा का चुनाव चिन्ह हाथी बना ।
बहुजन समाज पार्टी एक रीजनल पार्टी है जिसने देश के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राज्य उत्तर प्रदेश को सक्सेस फुल्ली गवर्न किया है। 1984 में एस्टब्लिश हुई इस पार्टी ने उत्तर प्रदेश का 2007 का lagislative assembly elections जीत के अपने गोल्डन एरा में एंट्री ली थी और मायावती की अगवाई में लड़ते हुए पार्टी को उम्मीद से बढ़ के सफलता मिली और 403 सीट वाली यूपी असेंबली में 206 सीट जीत कर BSP ने क्लियर कट मेजोरिटी के साथ उत्तर प्रदेश में सर्कार बना ली और साथ ही स्टेट में पार्टी का वोट शेयर सबसे ज़ादा 30 प्रतिसत रहा।
इतनी बड़ी जीत को देख कर लगा की अब बसपा का बुखार यूपी की जनता से जल्द उतरने वाला नहीं है और हुआ भी कुछ ऐसा ही साल 2009 लोकसभा इलेक्शन में पार्टी का परचम देश की 21 सीटों पर लहराया और इस दौरान अकेले यूपी से पार्टी को कुल 20 सीट मिली और पार्टी क वोट शेयर भी काफी मजबूत रहा इस जीत के बाद कांग्रेस और भाजपा के बाद बसपा को तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बना दिया था और इसी के बाद पार्टी 2014 के लोकसभा इलेक्शन की तैयारिओं में जुट गयी। और यहाँ से स्टेट छोड़ आप पार्टी का सबसे बड़ा टारगेट बन गया था बीजेपी को बीट कर देश की सबसे बड़ी ओप्पोसिशन पार्टी बन न। हालाँकि राजनीती के जानकार मानते है की यही से शुरू हो गयी थी बसपा के डाउन फॉल की अब तक की सबसे बड़ी कहानी और उसका नतीजा ये रहा की पार्टी को 2014 के इलेक्शन में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और 2009 की 21 की 21 सीटों से भी हाथ धोना पड़ा। और 2009 की जिस इलेक्शन के दम पर 2014 में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर दावा ठोकने जा रही थी उसी इलेक्शन में बसपा की कमर टूट गयी कहानी यही नहीं खतम हुई आपको बता दें की जिस यूपी से बसपा का जन्म हुआ वही से 2017 के विधान सभा चुनाव में हालत खस्ता रही और 2007 में जो सीट 206 थी वही अब 10 साल बाद सिर्फ 19 पर आके अटक गयी वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में एंट्री हो चुकी थी योगी आदित्य नाथ led भाजपा की जिसने कुल 312 सीट जीती।
पहले 2014 और फिर 2017 के चुनाव ने पूरी तरह से बसपा की कमर तोड़ दी और यही वजह रही की पिछले कई सालों से बसपा की सबसे बड़ी rival रही समाजवादी पार्टी से गठबंधन करना पड़ा लेकिन कामयाबी यहाँ भी हाथ नहीं लगी और लोकसभा इलेक्शन 2019 में दोनों पार्टियों ने मिलकर भी 15 सीट ही ला पायी। बसपा का पतन यही ख़तम नहीं हुआ और 2022 का विधानसभा चुनाव बसपा के लिए किसी भयानक सपने से कम नहीं रहा क्यूंकि इस इलेक्शन में बसपा को सिर्फ एक सीट मिली।
अब ज़रा सोच के देखिये बसपा वो पार्टी थी जिसने एक दशक पहले जिस दिन पार्टी ने उत्तर प्रदेश में राज किया अब उसी पार्टी के पास अपने ही घर में सिर्फ एक सीट है अब बात करते हैं उस इलेक्शन के बारे में जिसने बसपा के भविस्य पर तलवार सी लटका दी हम बात कर रहे है 2024 के लोकसभा इलेक्शन की जिसमे बसपा एक मात्र ऐसी पार्टी थी जिसने अकेले यूपी से 79 सीट और पुरे भारत में 543 सीट में से 424 सीट से इलेक्शन कांटेस्ट किया था लेकिन एक भी सीट पर जीत नहीं सकी जो दिखता है की सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि पुरे देश से बसपा की चमक एकदम गायब हो चुकी है ऐसे में सवाल ये उठता है की।
बसपा के इस डाउन फॉल में कौन कौन सी बड़ी वजह रही तो यही सामने यही आती है की राइज ऑफ़ भाजपा , asp पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर की एंट्री , और यूपी के राजनीति की बात करें तो यहाँ दो तरीके के वोट बैंक बहुत क्रुशल रोले प्ले करते है एक है ब्राह्मण वोट तो दूसरा दलित वोट बैंक। 2007 में बसपा की बड़ी जीत का कारन ही यही था की बसपा ने दोनों का समीकरण ठीक बैठाया था। पहले दलित वोट बैंक मायावती के पास था लेकिन आज के समय में स्तिथि बहुत बदल चुकी है।
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