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आज के समय में महिलाओं के लिए सड़क पर निकलना बिलकुल भी सेफ नहीं है। उनके लिए रोड सेफ्टी एक बड़ी चुनौती बन गयी है। महिलाओं को बाहर जाने से पहले कई बार सोचना पड़ता है। यह एक ऐसा पहलू है जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। तो आइये जानते हैं, क्यों महिलाओं के लिए आज रोड सेफ्टी बन रहीं है लैंगिक समानता की एक बड़ी चुनौती…
अधिकतर जगहों पर लैंगिक भेदभाव
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आपको बता दें, हमारे देश में बड़े स्तर पर लिंग आधारित भेदभाव हो रहा है। जन्म से लेकर मौत तक, शिक्षा से लेकर रोजगार तक, हर जगह हमें लैंगिक भेदभाव देखने को मिलता है। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स की बात करें, तो भारत 144 देशों की सूची में 129वें स्थान पर पर आता हैं। इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश में लैगिंक भेदभाव की जड़ें कितनी मजबूत और गहरी होती जा रहीं हैं।
सड़क सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा
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वहीं अगर हम सड़क सुरक्षा की बात करें, तो हम अक्सर सड़क दुर्घटनाओं, गाड़ियों की स्पीड और बुनियादी ढांचे की ही बात करते हैं। मगर यह बात कोई समझने के लिए शायद तैयार नहीं है कि महिलाओं के लिए, सड़क सुरक्षा इन खतरों से कहीं ज्यादा है।
महिलाओं को उठाना पड़ता है जोखिम
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आज के समय में महिलाओं को सड़कों पर चलना एक बड़े जोखिम को मोल लेने जितना होता है। घर से बाहर निकलने पर उन्हें घूरती नजरों का डर बना रहता है, अकेले चलने वाली लड़की अपने दिन की शुरुआत भले ही कितने आत्मविश्वास से करे, लेकिन रात के समय वह खुद को डर और चिंता से भरे माहौल में पाती है।
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